अबतक के साधु संत ने जो कुण्डलिनी जागरण के सम्बन्ध में बताया है -उनमे सभी के अपने अपने विचार हैं। विचारों में विभिन्नता क्यों हैं -सभी के विचार एक जैसे क्यों नहीं हैं -इस सम्बन्ध में समझना आवश्यक है। इसके बिना आप अपनी कुण्डलिनी शक्ति को न समझ सकते हैं और न इस शक्ति का विकास ही कर पाएंगे।
मैं यहाँ बहुत सरल शब्दों में बताना चाहूंगा ताकि हर पहलुँओं को अच्छी तरह सोच-समझ सकें।
आप सभी जानते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति के जन्म के समय जो ग्रहयोग बने होते हैं -उस अनुसार उसका व्यक्तित्व बनता है, उसका चरित्र का निर्माण होता है -उसके कुछ विशिष्ट गुण होते हैं और अवगुण भी होते हैं और जीवन का घटना क्रम भी वैसा होता है जिसे ज्योतिषीय माध्यम से समझा जाता है। जन्म के समय से बुढ़ापा और अंतिम क्षणों तक उस व्यक्ति के कुछ गुण और अवगुण बने रहते हैं। सर्वांगीण रूप से व्यक्ति गुणवान नहीं रह सकता -जितना पक्ष गुण का मजबूत होगा उतना ही अवगुण का पक्ष रहेगा। यदि जबरन बुराई का पक्ष का दमन किया गया तो वह अन्य प्रकार के लक्षणों में देखे जाएंगे या रोगी जीवन बिताएंगे। कुण्डलिनी शक्ति का मुख्य प्रभाव उनके गुण और अवगुण पर विशेष रूप से होता है।
प्रत्येक व्यक्ति की कुण्डलिनी शक्ति जगी हुई होती है और यह कभी भी सुप्त अवस्था में नहीं होता। इसी के कारण व्यक्ति अपना विकास करता है और जीवन बिताता है। -और यदि ऐसा ही है तो आपके मन में प्रश्न पैदा होगा कि लोग किस कुण्डलिनी शक्ति की बात करते हैं। कुछ इस विषय पर चर्चा करना आवश्यक है। – व्यक्ति के जन्म के समय में जो उनकी जन्मकुंडली बनती है उस अनुसार यह तय किया जाता है कि उसका जीवन कैसा होगा और वह अपने जीवन के क्या-क्या करेगा – पुलिस बनेगा , नेता बनेगा , पंडित बनेगा , वैज्ञानिक बनेगा या डॉक्टर बनेगा इत्यादि इत्यादि। वह जो भी बनता है -अपनी कुण्डलिनी शक्ति से बनता है -बिना इस शक्ति के वह जीवित रह ही नहीं सकता। इसे जो भी कुण्डलिनी शक्ति का स्तर होता है उस अनुसार वह अपना विकास करता है।
व्यक्ति के जन्म के बाद की जो कुंडली शक्ति होती है -उसे यदि किसी अभ्यास या साधना आदि से कई गुना बढ़ा दी जाए तो वह अपने गुणों में चमत्कारिक शक्ति आ जाएगी और वह अपने जीवन में कई चमत्कारिक कार्य कर सकेगा – चाहे वह एक शक्तिशाली मायावी राक्षस बन जाए या दैविक गुणों से भरा देव तुल्य मानव बन जाए। -इसी को कुंडलिनी जागरण कहते हैं। दूसरे शब्दों में जन्मकुंडली की शक्ति को यदि उच्च स्तर तक बढ़ाया जाए -उसे कुण्डलिनी शक्ति जागरण कहते हैं।
सबके अपने अपने ग्रहयोग होते हैं और सभी अपने ग्रहयोगों के अनुसार जीते हैं और जो उन्हें शक्ति मिली होती है उस अनुसार अपना जीवन निर्वाह करते हैं। उसी शक्ति को किसी माध्यम द्वारा यदि दसगुना भी बढ़ा दिया जाए तो वह अपने गुणों या अवगुणों का चमत्कारिक प्रदर्शन करेगा जिसे कुण्डलिनी जागरण हुआ समझा जाता है।
इसे और स्पष्ट तरीके से समझते हैं –
क्रमशः