पूर्व विधि की तरह ही आसन पर बैठ जाएं।
अब ऑंखें बंद कर विशुद्धि चक्र पर मन को बनाएं और तीन माला जालंधर बंध लगाएं और तीन माला दिए गए मंत्र की साधना करें। प्रत्येक माला पूर्ण होने पर जालंधर बंध खोल सकते हैं और गले-गर्दन को कुछ देर आराम दे सकते हैं। ध्यान रखें कि आरामपूर्वक ही जालंधर बंध लगाकर साधना करनी है।
मंत्र है -ग्रम घ्रं ग्रीवाय नमः / GRAM GHRAM GRIVAY NAMAH
जब तीन माला जप पूर्ण हो जाए तो आप कटोरी वाली पानी पी लें।
इसके बाद छठे मुहूर्त की साधना करें।
विधि वही पूर्व की भांति रहेगी।
इस बार ऑंखें बंद कर अपने मन को अपनी आज्ञाचक्र पर टिकाना है। इसके बाद छह माला निम्न मंत्र की साधना करनी है। एक माला जप पूरा करने के बाद अपने मन को सहज अवस्था में लाएं और ऑंखें खोल का कुछ क्षण विश्राम करें।
मंत्र है -ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं शिवाय नमःॐ / OM HREEM HREEM HREEM SHIVAY NAMAH OM .
छह माला जप पूर्ण होने के बाद कटोरी वाली पानी पी लें।
अब सातवें मुहूर्त की साधना करनी है।
सारी विधि उपरोक्त की भांति रहेगी।
आसन पर बैठ कर मन को स्थिर करें। सहस्त्रार चक्र अर्थात मन जहाँ से सोचना आरम्भ करता है – उस सूक्ष्मता तक मन को टीकाकार स्थिर रखें और नौ माला ऑंखें बंद कर निम्न मंत्र का जप करें-
मंत्र है -ॐ परम सुक्ष्म ब्रह्म जगताय क्लीं नमः /OM PARAM SUKSHMA BRAHMA JAGATAY KLEEM NAMAH
नौ माला जप के बाद कटोरी वाली पानी पी लें।
अगले दिन से पंद्रह मिनट का ध्यान करें। मन को ध्यान की अवस्था में लाने से पहले मन में यह भाव लाये कि “ब्रह्माण्ड की सभी अनुकूल शक्तियां मुझे प्राप्त हो चुकी हैं। ” -इस प्रकार मन में सकारात्मक भावना लाते हुए ध्यान की स्थिति बना लें।
उक्त प्रकार से ध्यान कम से कम 51 दिन करें। उसके बाद आपके मन के अनुसार चमत्कारिक सफलताएं दिखने लगेंगे। कर्म अच्छे रहेंगे तो देव तुल्य हो जाएंगे अन्यथा चमत्कारी राक्षस बन जाएंगे।
ध्यान करना छोड़े नहीं और कभी अहंकार पैदा न होने दें।