यह विद्या आज के समय मे विलुप्त हो गयी है और इस प्राचीन विद्या को जानने वाला स्वयं के शरीर को और अपने साथ होने वाली अच्छी या बुरी घटनाओं को एक ज्योतिष की तरह जान सकता है और उन घटनाओं को नियंत्रित भी कर सकता है।इसका अर्थ ये है कि वह अपने ग्रहों को भी नियंत्रित कर सकता है।
इस विद्या को प्रत्यक्ष सीखे तो ज्यादा बेहतर है क्योंकि मैसेज में इस शास्त्र को पुर्णतः समझना थोड़ा मुश्किल है।
4 चीजे ध्यान देने योग्य है
1. 3 महत्पूर्ण नाड़ियों की जानकारी।
2. इनको चेक करना
3. कौन सी नाड़ी कब चलती है उसका समय।
4. सांसो को परिवर्तित करना।
क्रमशः बाएं तरफ से चलने वाली सांस अथवा स्वर को हम चंद्र (इड़ा नाड़ी) बोलते है।
दाहिने सांस अथवा स्वर को हम सूर्य(पिंगला नाड़ी) बोलते हैं।
जब दोनों सांस अथवा स्वर साथ चले तो उसे सुषुम्ना नाड़ी बोलते है।
स्वर चलने का नियम-
1.शुक्ल पक्ष- प्रथम 3 दिन चंद्र नाड़ी फिर 3 अगले 3 दिन सूर्य नाड़ी।
हर तीन दिन पे परिवर्तन होगा।
2.कृष्णा पक्ष – प्रथम 3 दिन सूर्य नाड़ी फिर हर तीन दिन पे परिवर्तन।
एक दिन ढाई घड़ी के लिए एक नाड़ी चलती है।
दिए हुए नियम के विपरीत अगर स्वर चल रहा हो तो समझना चाहिए कि आगे आने वाले 15 दिन अनुकूल नही है और ग्रहों द्वारा नकारात्मक प्रभाव हमारे नर्वस सिस्टम पे आने वाला है और अगर दिए हुए नियम के हिसाब से चल रहा हो तो 1आगे के 15 दिन अनुकूल होने वाले है।