बहुत से लोग अपने जीवन मे चिंतित रहते है और चिंता के कारण दुखी भी रहते है और निरंतर इससे बाहर निकलने का रास्ता ढूंढते रहते हैं लेकिन ये नही समझ पाते कि चिंता को उन्होंने खुद पकड़ा हुआ है और जब तक इसे छोड़ते नही पूरे जीवन पर्यन्त यह उनके साथ लगा ही रहेगा। अब इसके पीछे का कारण जानना अनिवार्य है की उन्होंने चिंता को कैसे पकड़ रखा है। इसका कारण बहुत से लोग जानते ,समझते ओर सुनते भी है क्योंकि हर महापुरुष इसके बारे में विस्तार से बात कर चुका है । लेकिन उसको मानने के लिए तैयार नही की चिंता भविष्य की प्राप्ति और लगातार इक्षाओं/आशाओं का दोहराव है।आगे जो कर रहा हु उससे क्या प्राप्त होगा ,कितना होगा इसका जो तोल मोल है ये उतपन्न करता है। चिंता इस चीज़ की है कि मैं ये कर रहा हु तो मुझे मिलेगा क्या ? उदाहरण मुझसे बहुत से लोग बोलते है ध्यान करेंगे तो क्या मिलेगा और कब तक मिलेगा काफी लोग इस तरह के प्रश्न करते है और पहले भी कितने महापुरुष आये उनसे भी किया। जब भी यह प्रश्न उठा की ये मिलेगा कैसे इससे होगा क्या बड़े बड़े महापुरुषों ने बस करने के लिए बोला ऐसे करो और ऐसे ही करते जाओ लेकिन दिक्कत क्या है की करने से पहले लोगो को प्रमाण चाहिए होता है कि हमे मिलेगा क्या ? यह जो फल प्राप्ति की जो चिंता है ये असामान्य चिंता है।
लोग ये प्रश्न जरूर करते है ईश्वर कैसा दिखता है !ईश्वर को पाने से क्या हो जायेगा ? परमात्मा कैसे प्राप्त होगा ?,कब तक प्राप्त होगा लगता है ? ऐसे जैसे आजकल की भावना बनी हुई है की इतने रुपये में इतने gb डाटा इतने दिन तक चलेगा वैसे ही वो परमात्मा प्राप्ति को ही लेकर चल रहा है। लोगो को इसकी चिंता है कि कितने दिन ध्यान करेंगे तो क्या प्राप्त होगा?इसकी चिंता ज्यादा होती है कि बताए गए कार्य को कितने दिन करेंगे? लेकिन करना क्या है उसका तो किसी ने सोचा ही नही, ना उसकी तैयारी की ।
गौतम बुद्ध हमेशा मुस्कुरा कर चुप होजाते थे ऐसे प्रश्न पे , परमात्मा कोन है ,कैसे प्राप्त होगा, कब तक प्राप्त होगा ? ऐसे में वो मौन धारण कर लेते थे चुप होजाते थे मुस्कुरा कर चुप हो जाते थे।अधिकतर बड़े बड़े महापुरुष ने इसी तरह से जवाब देना उचित समझा परमात्मा कौन है ,कैसा दिखता है ,कब तक मिलेगा।सबसे आवश्यक है जो रास्ता बताया है उस पर चलना इसमे प्रश्न पूछने की आवश्यकता ही नही होगी। ये जो सीमित ओर निर्धारित चीज़े है ये केवल आपके हाथ मे जो नियम प्रणाली बनाई गई समाज के लिए वही तक है !क्या मिलेगा कब तक मिलेगा ये आपके हाथ मे नही है, अब चुकी हाथ मे नही है तो हाथ पे हाथ रख कर बैठ भी नही सकते क्योंकि वो जो समय आएगा मिलने का तब हम शायद कर्म नही कर रहे होंगे । किसी की ज़मीन में ज़मीन की निचे पेट्रोल है उसने 6 माह तक खोदा उसको या 1 माह तक खोदा उसको, मेहनत की उसने कर्म किया लेकिन ये सोच कर बैठ गया की क्या होगा इससे कोई फायदा नही कुछ ही दिन खोदने के बाद शायद उसको पेट्रोल मिल सकता था। ज़मीन के अंदर अपने लेकिन वो ये सोच कर बैठ गया कि इससे होगा क्या सब तो समय और भाग्य के ऊपर है , सभी भाग्य के ऊपर है, समय के ऊपर है लेकिन सतत कर्म तो किया ही जा सकता है। शायद 4 दिन बाद मिलने वाला था वो पेट्रोल ,लेकिन जब तक खुदाई रूपी कर्म नही होता रहेगा, तो समय भी आगे निकल जायेगा और जो मिलना चाहिए वो नही मिलेगा। ऐसा हुवा है किसी व्यक्ति के साथ उन्होंने काफी दिन तक ज़मीन खोदी किसी ने बोला था कि ऐसा है उसके बाद नही मीला ओर उस जमीन को सस्ते दाम में बेच दिया और अगले ने उस पर लगातार मेहनत की ओर उसको कुछ प्राप्त हो गया। उसके अंदर से ऐसी बहुत सी घटना सुनने को मिलती है ,ये तो एक उदाहरण है ऐसी बहुत सी घटनाये है । दिक्क्त यही पर है की करने की सोची नही ओर पाने की चिंता पहले हो गई ! ईश्वर वो नही है जिस तक तुम पहुचने का प्रयास कर रहे हो ,ईश्वर वो है जो स्वयं तुमहारे तक पहुँच जाता है । ईश्वर तुम्हारे पास ही है लेकिन उस रास्ते पर तो चलो ,उसे प्राप्त करने के रास्ते पर तो चलो उसे प्राप्त करना ही खुद को प्राप्त करना है ,खुद को प्राप्त करना उसको प्राप्त करना है दोनो समतुल्य है। दोनो एक सिक्के के दो पहलू है लेकिन पहले ये जानने में की इससे होगा क्या? इससे मिलेगा क्या ? ये चिंता आपको कभी भी नही छोड़ेगी।इस चिंता को पाला है यह चिंता आपके पास पल रही है क्योकी आप पाल रहे हो। कोई भी साधना के विषय मे पूछता है या किसी भी विषय मे पूछता है तो शुरू में मैं यहीबोलता हूं कि कम से कम शुरुआत ध्यान से करो बैठने की अवस्था प्राप्त करो, बैठो । शुरुआत में बैठो देखो थोड़ा तो 3 मिनट तो अपने मन को अपने कब्जे में लाओ की वो 3 मिनट तुमको बैठने दे शांति से। मन लगातार विचार लाता रहेगा ,शरीर को तो अपने कन्ट्रोल में ले कर के 3 मिनट से तो शुरू करो 3मिनट बैठाओ तो शरीर को 3 मिनट मन को अपने पास रहने तो दो। शान्ति में करने दो उसको विचार जो वो कर रहा है।शरीर तो शांत है उसको शांत होना ही पड़ेगा, करो तो।वर्षो राज किया है मन ने तुम्हारे शरीर मे कुछ समय के लिए कुछ मिनट के लिए तुम तो उस पर राज करना शुरू करो । मन पर तुम्हारा नियंत्रण ही नही है तो फिर चिंता भी करके क्या प्राप्त कर लोगे पहले उसे तो नियँत्रण करो जो सब कुछ देने में सक्षम है। उसके लिए कर्म तो करो 1 महीने ,1 वर्ष, 2 वर्ष उस राह पर चलो जो बताया जा रहा है ! मैं ये कर लूंगा तो क्या ये हो जाएगा में, ख़ूब सारी शक्तिया प्राप्त करना चाहता हु मैं, खूब धनवान बन जाना चाहता हु । बनना तो सभी सब कुछ चाहता है लेकिन बनने के लिए जो रास्ते पर चलना है वो कौन चलेगा। ये जो चलने की बात है ,ये चलने का हुनर और रास्ता ही तुम्हे मैं दिखला सकता हु । यहां कोई हवाई जहाज या कोई ऐसी टेक्नोलॉजी नही है कि आपको उड़ा कर के अपने साथ ले जा के मंज़िल पर छोड़ देगी ,ये व्यवस्थायें सीमित है । इसका वाहन आप स्वयं हो ।आपको नही आवश्यकता पड़ेगी किसी आधार की लेकिन एक बार चलो तो , कोई इंजन भी अगर स्टार्ट होता है तो पहले उसे किसी मशीनरी के सहारे दो तीन बार घुमाया जाता है तब वो वेग पकड़ता है और तब चलना शुरू करता है । कभी किसी गन्ना निकालने वाले के पास देखना वो मशीन को दो चार बार उसको घुमाता है अपनी तरफ से उसको वेग देता है तब वो एक वेग पकड़ता है और चलना शुरू हो जाता है लेकिन जो शुरूआत में जो घुमाने के लिए जो किया हुवा प्रयास है ,जो किया हुवा अभ्यास है ,उसे तो करो। सारी चिंताएं समाप्त ना हो जाये तो कहना ,चिंता जैसा तो कुछ है ही नही चिंता तो उसी समान है जैसे कि बीज मिट्टी में डाला नही की उस वृक्ष से सम्बंधित फलो की चिंता पहले करने लगे की कैसे फल उगेंगे। फल तो हेमशा अच्छे ही उगेंगे । अगर तुमने कर्म अच्छा किया है सही बीज डाल रहे हो, तुम्हरा चुनाव सही है तो फल तो सही ही उगने है। देखभाल तो तुम्हे ही करनी होगी ना उस वृक्ष की, उस पौधे की । विवेकपूर्ण जो निर्णय है वो तो तुम्हे ही लेने है ना इस वजह से खुद को स्थिर करो, विवेकपूर्ण बनो हर चीज़ की एक शांत मन से स्थिर हो कर निर्णय करो । भविष्य की प्लानिंग नही की इससे क्या प्राप्त होगा, इसकी प्लानिंग नही उस तक पहुँचने की लिए रास्ता कौन सा है, कैसे चलना है और अगर कोई रास्ता बताने वाला हो तो बात ही क्या । लेकिन रास्ता बताने वाले से मंजिल के बारे में कम प्रश्न करते हुवे रास्ते के बारे में ज्यादा प्रश्न करो , रास्ते मे चलने में क्या क्या तकलीफ़ है ,कैसे चलना है, उसके लिए किस तरीके से तैयारी करनी है इसकी चिंता करो और ये की गई चिंता उस चिंता की तरह नही होगी जो तुम कर रहे हो भविष्य के लिए। यह चिंता बहुत सहज होगी सरल होगी इस चिंता में आनंद आएगा इसके लिए इस शब्द के लिए चिंता शब्द बोलना गलत ही है अतः तैयारी करो ध्यान में आगे बढ़ो मन को स्थिर करो । खुद को समय दो , दस मिनट बीस मिनट बैठो कौन सा ध्यान करते वक्त तुम्हारे करोड़ो खर्च हुवे जा रहे है या कोई तुमसे ध्यान करने के लिए कह रहा है तो तुमसे उसने कौन से करोड़ो रूपये ले लिए बस बैठने को तो बोला किसी भी समय निकाल करके बैठने के लिए ही तो बोला तीन मिनट से शुरूआत करो धीरे धीरे कुछ कुछ सेकंड बढ़ाते हुवे समय सीमा बढ़ाओ ।आँख बंद करके शांति से बैठने का तो अभ्यास करो यही स्थिरता, यही अभ्यास तुम्हारी भौतिक ज़िंदगी और आध्यात्मिक ज़िंदगी दोनो में काम आएगी, दोनो में कार्य करेगी ।यही तो करना है, चिंता किस चीज़ की इसीलिए तो श्री कृष्ण ने बोला कि फल की चिंता क्यों करना कर्म करो कर्म के बारे में सोचो ,कर्म किसी कॉम्पिटिशन की तैयारी करने का है तो उसकी प्लानिंग करो चिंता इस चीज़ की हो रही है कि में बनूंगा की नही, बनूंगा ,कब बनूंगा कितना वर्ष लग जायेगा ,तुमने कर्म तो किया ही नही फिर सोच कैसे रहे हो। यह तुम्हारे मार्ग को सहज करेगी तुम्हारे मार्ग को सरल करेगी तुम्हे जो कर्म करना है तुम्हे जिस रास्ते पर चलना है उस पर चलने में तुम्हे सहजता प्रदान करेगी, उस रास्ते पर चलने में जहाँ तुम साइकिल पर चल रहे हो, ये तुम्हे कार में चलने वाली सहजता प्रदान करेगी। साधनाओं का यही लाभ है। साधनाओ का यही तक साथ है लेकिन हम क्या समझ बैठते है की साधनाये ही मंजिल है ! साधनाये रास्ते है, मार्ग है चलने के और तुम्हारे किये हुवे कर्मो को सहज करने के लिए, ठोकरे कम खाने के लिए । साईकिल पर जितनी ठोकरे खाओगे, कार में उतनी नही लगेंगी ना । यह साधनाये वही मार्ग है, वही सहजता प्रदान करती है। साधनाये इसीलिये मत करो कि मंजिल मिल जाएगी साधना इसीलिए करो , ध्यान इसीलिए करो कि रास्ते सरल हो जाये ,जो मंजिल तक ले जाएं।क्योंकि चलना तो पड़ेगा ही ,यह सृष्टि कर्म प्रधान है ।इस दुनिया मे कर्म तो करना ही पड़ेगा ही, भाग कर कहा जाओगे इतनी अवस्था भी प्राप्त नही है, मृत्यु की बाद व्यक्ति पूर्व कर्मो को भूल कर नया जीवन निर्वाह करता है ,नए जीवन मे ,वो भी तो नही कर सकते इस जन्म में उतनी भी तो कुशलता नही आई है ,कर्म तो करना ही है लेकिन ये चिंता शब्द को त्याग दो । चिंता तो तुमने हमेशा किया लेकिन उससे मिला क्या तुम्हें कभी बैठ कर चिंतन करो की उस चिंता ने तुम्हे कुछ दिया या तुम्हरे कर्म ने तुम्हें कुछ दिया औऱ आगे विचार करो।
धन्यवाद