जैसा कि हमने पिछले पाठ्यक्रम में बात की थी कि हम जैसे जैसे शारीरिक और मानसिक स्थिरता को प्राप्त होना शुरू होते जाते है सहज ही अनेको विशेष उपलब्धियों के लिए तैयार होते जाते है।अब हम जानेंगे कि हम किस प्रकार ब्रह्मांड के मूलभूत नियमो से जुड़ सकेंगे और स्वयं के लिए और दूसरों के लिए भी कल्याणकारी बन सकेंगे।
इस प्रक्रिया से आपके अंदर वो सभी सम्भावनाओ का उदय होना शुरू हो जाता है कि एक विचार मात्र से स्वयं की परिस्थितियों, आस पास की स्थितयों के साथ साथ किसी भी व्यक्ति के जीवन मे कल्याणकारी परिवर्तन कर सकेंगे।ध्यान रहे इस प्रक्रिया से केवल आप स्वयं हेतु एवं दुसरो के लिए कल्याणकारी कार्य करने के योग्य ही होते जाते है ,इस प्रक्रिया का उपयोग किसी के अहित करने हेतु नही कर सकते।
शुरुवाती तैयारी में आप सभी को कुछ मूल नियमो का कड़ाई से पालन करना आवश्यक है।
ध्यान की बताई गई प्रक्रिया के अनुसार आप सभी को ध्यान में बैठना है ।इस प्रक्रिया के लिए सबसे उचित समय प्रातः 2.45 से 3.45 का है।इसे एक साधना के तरह करना है।बताये गए समय पर ध्यान में बैठे ,पूर्ण स्थिरता एवं शांति से ,धीरे धीरे स्वांस लें एवं बाहर छोड़ें।इस प्रकार से 5 से 10 मिनट तक शांति से ध्यान अवस्था मे बैठकर स्वांसों को गहराई स लें एवं धीरे धीरे बाहर निकालें।अब स्वांस को धीरे धीरे पूरा बाहर निकाल दें और स्वांस को रोक लें एवं निचे बताये गए शब्दो को मन मे दोहराएं, तब तक दोहराएं जब तक स्वांस रोके रख सकें।इन शब्दों को दोहराते हुए पूर्ण आनंद में स्वयं को रखें।अपने अंदर पूर्ण भावना से इस प्रार्थना को प्रसारित होने दें।
“मेरी चेतना स्थिर, एकाग्र है,केंद्रित है।समस्त विकारों से मुक्त शांत चेतना में मैं स्थिर हु एवं ब्रह्म चेतना से जुड़ कर एकाकार कर रहा हु।”
जब स्वांस टूटने लगे तो प्रार्थना रोक कर शांत स्थिरता से अपनी सामान्य अवस्था मे स्वांस लें और बाहर छोड़ें।
पुनः स्वांस को पूर्ण रूप से बाहर निकाल कर स्वांस रोक दें और जब तक स्वांस न टूटे ऊपर दिए गए शब्दो को दोहराए। ऐसा तीन बार करें।
अब सामान्य अवस्था मे स्वांस की प्रकिया चलने दें और नीचे लिखे गए शब्दों को दोहराए मन मे कम से कम 10 मिनट तक।
” मैं सृष्टि की सभी शक्तियों को धन्यवाद करता हु।सृष्टि की समस्त शक्तियों का मैं एक आनन्दित हिस्सा हु।मैं आनन्द में हु,समस्त सृष्टि आनन्द में है,समस्त सृष्टि अत्यंत सुंदर है इसके रचयिता अत्यंत आनंद देने वाले है और मुझे आनन्द प्रदान कर रहे है।सृष्टि में व्याप्त समस्त ऊर्जाएं मेरे जीवनी शक्ति का विस्तार कर रही है।यह समस्त ऊर्जाएं हमेशा मेरे साथ रही औऱ मेरे सजग प्रार्थना पर हमेशा मेरे विचार मात्र से सभी परिस्थितियों में परिवर्तन करती है।समस्त ऊर्जाएं कल्याणकारी हैं,मैं कल्याणकारी हु।”
बस ऐसा एक साधना समझ कर इसे अपने जीवन मे उतारे आगे की सभी सम्भावनाये आपके अंदर जागृत होनी शुरू होंगी। सभी प्रकार के प्रश्नों के उत्तर मात्र एक बार मन मे सोचने से ही किसी न किसी माध्यम से प्राप्त होने लगेंगे।
आपके अंतर्ज्ञान की वृद्धि इससे होती है।ऐसे अनेको अनुभवित शक्तियों का उदय मनुष्य के भीतर होना शुरू हो जाता है जो व्यक्ति स्वयं अनुभव कर सकता है शब्दो मे नही बता सकता।
स्वयं करें और इसका आनन्द अनुभव लें।आपकी आध्यात्मिक यात्रा को गति देने हेतु सामान्य लेकिन अत्यंत कारगर ध्यान साधना है यह।