पंच गंगा घाट (वाराणसी) –

वाराणसी कई मामलों में सम्पूर्ण विश्व मे विख्यात एवं विशेष है।वाराणसी को जानने या इसमे रुचि रखने के अनगिनत कारण है।वैसे तो वाराणसी का नाम वरुणा और असि नदियों के इस पवित्र शहर से होकर गुजरने के कारण रखा गया लेकिन कुछ लोग वाराणसी का अर्थ “पवित्र जलवाली पूरी”भी बताते है। यहां के हर गली में एक विशेष आध्यात्मिक महक है और सिद्ध सन्तो के चरण रज हैं लेकिन आज हम जिस विषय पर बात करने वाले है वो है वाराणसी के कई घाटों में एक विशेष घाट पंचगंगा घाट। मैं आध्यात्म के दृष्टिकोण से बताऊं तो यह घाट बहुत ही महत्व रखता है।
पंचगंगा तट में पांच नदियों का संगम है धूतपाप और किरण जैसी अदृश्य नदियों समेत गंगा,यमुना,सरस्वती का यहाँ मिलन स्थल है।
इसी पावन तट पर पांच भगवत प्राप्त सन्तो का समय समय पर अवतरण हुआ है।जिनमे रामानंदाचार्य,वल्लभा चार्य जी,तैलंग स्वामी जी,एकनाथचार्य जी एवं ऋषि बिंदूगीरा जी हैं।14 वी शताब्दी में सन्त रामानंद ने यहां वैष्णव धर्म का प्रचार किया और यही पर सन्त कबीरदास को गुरुमन्त्र मिला।

काशी के सचल विश्वनाथ महायोगी तैलङ्ग स्वामी भी यही लीन रहते है थे एव उनके द्वारा स्थापित एव पूजित शिवलिंग आज भी यहां साधको को अपनी तरफ खींचता है।

भगवान बिंदुमाधव मन्दिर जो कि भगवान विष्णुजी का भव्य मंदिर है यही पर स्थित है।

यहीं पर सन्त एकनाथजी ने वारकरी सम्प्रदाय का महान ग्रन्थ श्रीएकनाथी भागवत लिखकर पूरा किया और काशिनरेश तथा विद्वतजनों द्वारा उस ग्रन्थ की हाथी पर शोभायात्रा बड़ी धूमधामसे निकाली गयी।

कुल मिला कर यह संछिप्त जानकारी इसीलिए लिखा कि वहाँ की उर्जात्मक स्थिति को महसूस किया जा सकता है एवं एक योगी-साधक के लिए यह जगह अत्यंत विशेष एव शोध खोज का विषय बन सकता है।

धन्यवाद

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