शरीर और खुद को आत्मसात करने का महत्व विज्ञान और अध्यात्म की दृष्टि से –
हम इस समय जिस दौर से गुजर रहे हैं इसमे विज्ञान और अध्यात्म दोनो को महत्वों को अलग अलग नजरिये से देखने और समझने का प्रयास करते रहते हैं। इसी तरह का कई विषयों पे हम लेख के माध्यम से चर्चा करते रहेंगे और अध्यात्म के उद्देश्य और मार्ग को समझने की कोशिश करेंगे।
हम हमेशा शास्त्रों में और जितनी भी आध्यात्मिक किताबे है उसमे ये पढ़ते और सुनते आए है कि ध्यान,साधना,आराधना से खुद को जानो जो तुम्हारा आत्म स्वरूप है अर्थात ऊर्जा स्वरूप।
यह एक छोटे से शब्द के पीछे की शक्ति हम विज्ञान के दृष्टि से समझने की कोशिश करेंगे।इसके पहले हमें ये समझ लेना चाहिए कि केवल मुह से बोल देने और कान से सुन लेने मात्र से आत्मबोध नही होता अपितु इसके लिए साधक को तप करना पड़ता है।
जब हम बात आत्मबोध या ऊर्जा रूप में खुद को समझने लगे जाए तो हम अपनी क्षमता को कई गुना बढ़ा सकते हैं और ईश्वरीय सत्ता को समझने लगते है या समझिए “अहम ब्रह्मास्मि” शब्द बोलना गलत नही होगा अर्थात हम अपनी क्षमता में कई गुना वृद्धि कर लेते है ऊर्जा रूप में खुद जान लेने से,ये जान लेना केवल किताब या सुन के नही बल्कि तप से सम्भव है।
अब हम विज्ञान की दृष्टि से समझेंगे की किस प्रकार हमारी क्षमता इतनी बढ़ सकती है ऊर्जा स्वरूप में।
“किसी पदार्थ को जलाने से उसके अंदर की ऊर्जा का एक अरबवां हिस्सा ही हमें मिल पाता है. यानी एक लीटर पेट्रोल जलाने पर आपकी कार अगर 20 किलोमीटर चलती है, और इसी एक लीटर पेट्रोल को पूरी तरह से ऊर्जा में बदल दिया जाए तो आपकी कार लगभग 20 अरब किलोमीटर चलेगी. (आसानी से समझाने के लिए कैल्कुलेशन को थोड़ा जनरलाइज़ किया गया है)”
यह वैज्ञानिक तथ्य आप गूगल से भी प्राप्त कर सकते हैं।
अतः आप इस अवस्था को समझ गए होंगे जिसे मैं संछिप्त में समझाने की कोशिश कर रहा हु।
वैसे यह विषय ऐसा है कि सामने वाले को ये बाते जब तक खुद अनुभव नही होंगी नही मानेगा,लेकिन अनुभव के लिए तप नही करना चाहेगा।
अतः किसी भी प्रकार के तर्क वितर्क न करते हुए इस गुड़ ज्ञान को समझने का प्रयास करें।
धन्यवाद
प्रशान्त पांडेय।।