क्रियायोग – संकल्प शक्ति का व्यायाम –

क्रियायोग के विषय मे मेरे द्वारा विस्तार चर्चा पूर्व में भी की गई है फिर भी संछिप्त में समझें तो कुछ इस प्रकार समझा जा सकता है कि कुछ महत्वपूर्व यौगिक क्रियाओं को इस तरह क्रमानुसार सजाना जिसके सतत अभ्यास से आपके अंदर की चेतना शक्ति को यह अभयास पूर्ण रूप में झकझोर देता है और आपका योग स्वयं के शुद्ध ऊर्जा स्वरूप से कराता है।यह क्रिया आपके अंदर संकल्प शक्ति को इतना दृढ़ बनाता है कि आप संकल्प मात्र से किसी भी प्रकार का परिवर्तन अपने आस पास के माहौल में करने में सक्षम हो जाते हैं।वैसे तो क्रियायोग के अभ्यास से आप एक ऐसी उच्च स्थिति को प्राप्त कर जाते है जिसको शास्त्रों में मुक्ति कहा गया है अर्थात चेतना के शुद्ध रूप में एकाकार हो जाना लेकिन भौतिक जीवन मे भी यह इसके अभ्यास से सजातीय तत्वों की एक अदृश्य शक्ति काम करने लगती है और सफलता के अनेको मार्ग सूझने लगते है।आपको ऐसा लगने लगता है जैसे कोई दैवीय शक्ति आपके अंदर आ गयी किंतु वह संकल्प की शक्ति ही होती है।आप किसी भी क्षेत्र में हो आपकी संकल्प शक्ति उस कार्य मे आपको महारथ प्राप्त करता सकती है।

वर्तमान युग मे शुद्ध एवं मूल क्रियायोग का प्रशिक्षण आवश्यक है जिसमे अपना कुछ समय देके अपने संकल्प शक्ति से आप अपने अंदर ही नही अपितु बाहर की भी सभी मूलभूत चीजो को समझने लगते है।यही सत्य का मार्ग है और यही धर्म है।इसीलिए क्रियायोग को संकल्प शक्ति का व्यायाम कहना गलत नही होगा ये आपके संकल्प को उसी प्रकार मजबूत करता है जैसे आप व्यायाम करके अपने स्थूल शरीर को स्वास्थ्य एवं मजबूत बनाते है।शरीर का जितना स्वस्थ होना जरूरी है उतना ही स्वस्थ्य और एकाग्र मन का भी होना आवश्यक है तभी सम्पन्नता के साथ अच्छे व्यक्तित्व का विकास करते हुए व्यक्ति इस जीवन मे खुद का और सभी का भला कर सकेगा क्योंकि सम्पन्नता आने के साथ अगर व्यक्तित्व का विकास न हुआ तो ये स्वयं का और दूसरो का भी क्षति करता है।अतः इन सभी मामलों में क्रियायोग मूल औषधि का कार्य करती है।

क्रियायोग आज से नही हजारों लाखों वर्षों से अस्तित्व में रहा है और भगवान कृष्ण ने भी गीता में इसके तरफ इशारा भी किया है।यह बूढ़े,बच्चे और जवान सभी के भौतिक और आध्यात्मिक विकास के लिए एक चाभी का काम करता है।यह संसार की एक महान साधना है जिससे ईश्वर के मूल रूप की उपासना एवं साधना स्वयं ही सम्पन्न हो जाती है।

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