आइये जितना समय मनोरंजन को दिया उतना समय ध्यान को भी देते है –

वर्तमान समय मे अध्यात्म का स्वरूप भिन्न भिन्न तरह से रूपांतरित हो कर अलग अलग विचार धारा में अलग अलग रूप में लोगो द्वारा बताया और स्वीकार किया जा रहा है।इन सब के बीच मूल अध्यात्म कही खोने लगा है और अध्यात्म का उद्देश्य भी।शुद्ध स्वरूप में ध्यान योग एक सबसे पवित्र और उत्तम मार्ग हमेशा से रहा है व्यक्ति के चेतन स्तर को बढ़ा कर एक उच्च अद्यतमिक स्थिति में ले जाने का।
वर्तमान समय मे सभी अपनी जानकरी को ही मूल विद्या मान कर दूसरो को नीचा दिखाने में लगे है और मूल उद्देश्य से भटकते जा रहे हैं।इस स्थिति में उनका अध्यात्मिक ज्ञान भी दूषित हो कर दोष रहित विचार पैदा कर देता है।इस स्थिति में आवश्य्कता है कि व्यक्ति ध्यान एवं योग में स्वयं को समय देते हुए अपने अंतर्ज्ञान का विकास करे और सही गलत का भेद समझते हुए इस श्रेष्ट मार्ग पर प्रगति करे।

एक छोटे से उदाहरण से समझने की कोशिश करते है रोज हमारे जीवन मे किस प्रकार से हमारे आस पास जाने अनजाने में कुछ ऐसे ऊर्जा स्पंदन विचारों से हम पैदा करते है जिससे बहुत नकारात्मक माहौल हमारे आस पास बनना शुरू हो जाता है।एक लड़का अपने घर मे अपने मोबाइल पर कोई ऐसा वेब सीरीज़ देख रहा था जिसको देख कर वो मन ही मन चिंतित और दुखी हो रहा था और विचार कर रहा था कि किस प्रकार के दुख है लोगो के जीवन मे,उसके द्वारा यह विचार इतने गम्भीर रूप से चिंतन किया जा रहा था कि इसका स्पंदन उसके घर मे उसके आस पास के माहौल में एक अजीब सा दुखी वातावरण पैदा कर रहा था ।थोड़ी ही देर में उसके माता पिता के बीच किसी छोटी बात पर झगड़ा हो जाता है और पूरे घर मे एक बहुत ही दुख और गम्भीर वातावरण हो जाता है।यह उदाहरण के तौर पर आप लोगो को समझाने के लिए बताया गया है लेकिन इस विषय पर मेरा कइयों पर शोध करने के बाद इसकी बारीकी को समझ सका।

इसी प्रकार जब व्यक्ति अपने घर मे ध्यान की स्थिति में बैठता है एवं ध्यान में शांत मन से ये विचार करता है कि सम्पूर्ण सृष्टि आनंद एवं सुख से भरी हुई है तो उसके जीवन,उसके घर और आस पास के वातावरण में ऐसी ही सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बनता जाता है।
इस प्रकार अगर ध्यान को ही अपना मनोरंजन बना लिया जाए तो बात ही क्या।

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