परा,पश्यंती,मध्यमा,वैखरी वाणी एवं उनके भेद –
शरीर मे स्थित वाणी परारूप में अंकुरित होती है,पश्यंती रूप में होती,मध्यमा में अग्रगामी होती और वैखरी रुप में आकर पूर्ण विकसित हो जाती है।इस वाणी का जिस तरह…
शरीर मे स्थित वाणी परारूप में अंकुरित होती है,पश्यंती रूप में होती,मध्यमा में अग्रगामी होती और वैखरी रुप में आकर पूर्ण विकसित हो जाती है।इस वाणी का जिस तरह…
जब मनुष्य कामनाबद्ध होकर विषयो की ओर दौड़ता है,उस समय विषयो को प्राप्त करते हुए कामनाएं बढ़ती जाती है।इसलिए विषय और कामना दोनो से अलग होकर (आत्मा में ध्यान…
प्रथम को मूलबन्ध,दृतिय को उड्डियान बन्ध और तीसरे को जालंधर बन्ध कहते हैं।अब उनके लक्षण अर्थात साधना विधि समझते हैं। मूलबन्ध - शरीर के अधोभाग में विचरण करने वाले अपान…
कुंडलिनी एवं शक्तिचालिनी क्रिया (भाग 1) - प्रमुख शक्ति कुंडलिनी कही गई है,बुद्धिमान साधक उसे चालन क्रिया के द्वारा नीचे से ऊपर दोनो भृकुटियों के मध्य ले जाता है, इसी…
चित्त की चंचलता के दो कारण हैं,वासना अर्थात पूर्व अर्जित संस्कार एवं वायु अर्थात प्राण इन दोनों में से एक का भी निरोध हो जाने पर दोनो समाप्त हो…
इस आसन के अनेको फायदे है जिनमे से एक फायदे के बारे में एक विश्व प्रसिद्ध किताब '' गुप्त भारत की खोज" में पॉल ब्रंटन की चर्चा ब्रह्मा नाम के…
सारी सृष्टि कर्म प्रधान है एवं कर्म के आधार पर ही आप अपने जीवन मे अपना धर्म की आधारशिला रखते है।आपके कर्मों से ही धर्म और अधर्म की व्याख्या होती…
Importance of dhyan Or meditation in medical issues वर्तमान परिस्तिथि स्वास्थ्य को लेके बहुत ही प्रतिकूल चल रहा है एवं इसे सम्पूर्ण विश्व बहुत करीब से महसूस कर रहा है।स्वास्थ्य…
ध्यान के प्रकाश में अध्यात्म के रास्ते पर चलें मंजिल अवश्य प्राप्त होगी- ध्यान एक ऐसा शब्द है जिसे आज पूरा विश्व अपना चुका है औऱ भिन्न भिन्न तरीके से…
ध्यान - "ध्यान" यह सुनने में तो छोटा सा शब्द है लेकिन इसको कुछ इस प्रकार समझा जा सकता है कि अगर किसी व्यक्ति के हाथ मे किसी भी वृक्ष…