शारीरिक स्थिरता से मानसिक स्थिरता में प्रवेश एवं मानसिक शक्ति का विकास –

जैसा कि पिछले पाठ में आप सभी ने जाना कि किस प्रकार ध्यान का अभ्यास शुरू किया जाए और कैसे इसमे आगे बढ़ा जाए।जब आपकी शारीरिक स्थिरता बनने लगे और मन विचारशून्य होना शुरू हो उस समय आप सभी को प्रातः सूर्योदय के समय कुछ समय सूर्य के समक्ष एक प्रक्रिया से गुजरना है।

आईय जानते है –

स्थिरता से सूर्योदय के समय ऐसे स्थान पर बैठें जहाँ सूर्य उगते हुए दिखें कुछ देर तक सूर्य को इस स्थिति में देखें उगते हुए एवं धीरे धीरे स्वांस ले और बाहर निकाले अनुभव करें कि आपके अंदर आपके नाक से दिव्य प्राण ऊर्जा आपके अंदर धीरे धीरे प्रवाहित हो रही है जो पूरे शरीर मे फैल रही है और धीरे धीरे स्वास बाहर निकालते समय महसूस करें कि अंदर के सभी नकारात्मक,सभी दुख/ईर्ष्या/द्वेष/अहंकार रूपी दूषित ऊर्जाएं बाहर निकल रही है।अपने आपको आनन्दित और हल्का महसूस करें जैसे कोई भार अंदर से निकल रहा हो। यह सब प्रक्रिया करते समय स्थिर और रीढ़ की हड्डी सीधी करके बैठें।
स्वांस लेना और बाहर छोड़ना इसे एक क्रिया मानी जायेगी ऐसा कम से कम 21 बार करें।

अब आंखें बंद कर लें आपने दाहिने तरफ के नाक को दबाएं एवं बाएं तरफ के नाक से धीरे धीरे स्वांस लें इस स्वांस के साथ प्रातः की सूर्य की किरणों का प्रवेश बाए तरफ के नाक से अंदर जाते हुए सजग रूप से महसूस करें।स्वास लेते समय 6 सेकेंड में पूरी तरह स्वांस भर लें और दोनो नाकों को बंद करके स्वांस को 24 सेकेंड के लिए रोक दें इस स्थिति में अनुभव करें कि आपके अंदर यह ऊर्जा का भंडार आपके सभी नाड़ी,सभी शरीर के अवयवों को ऊर्जा से भर रहा है आपके मस्तिष्क को ज्यादा सजग और तीव्र कर रहा है फिर 24 सेकेंड स्वांस रोकने के बाद दाहिने नाक से 12 सेकेंड में धीरे धीरे पूरी स्वांस बाहर निकाल दें इस निकलती हुई स्वास के साथ सम्पूर्ण नकारात्मक भाव वाली सभी ऊर्जाएं जिससे आपका आत्मविश्वास कमजोर होता है उसे बाहर निकलता हुआ महसूस करें।अब दाहिने नाक से स्वांस लें ,स्वास रोके,और स्वास को बाहर निकाले ठीक जैसे आपने ऊपर किया है उसी प्रकार।
बाए से स्वांस लेना ,रोकना,दाहिने नाक से बाहर निकलना पुनः दाहिने से स्वांस लेना,रोकना, और बाएं से बाहर निकालना यह एक क्रिया हुई ऐसी आपको 15 क्रियाएं करनी है।

इसके बाद शांत,आनन्दित,ऊर्जा से भरे हुए स्वयं को शांत मन से स्थिरता के साथ ध्यान में बैठे रहने दें और कम से कम 21 बार नीचे दिए गए सूर्य गायत्री मन का मन ही मन जप करें।

ॐ आदित्याय विदमहे दिवाकराय धीमहि तन्नो सूर्यः प्रचोदयत।।

जिन्हें किसी भी प्रकार की स्वांस की परेशानी हो अथवा हृदय के मरीज हो वे स्वांस रोकने की प्रक्रिया न करें।केवल स्वांस एक तरफ से लें और दूसरी तरफ से बाहर निकाले ऊपर बताये गयी प्रक्रिया अनुसार।

यह अद्भुत शक्ति का आपके अंदर संचार करता है ।इससे निम्न परिवर्तन आपके अंदर आते है –

★ आपके अंदर चेतना का विस्तार होता है।
★ पहले से ज्यादा सजग होते जाते हैं।
★ यादाश्त तेज होती जाती है और मंद बुद्धि स्वस्थ्य होने शुरू ही जाती है।
★ दिमाग ज्यादा विश्लेषण करने योग्य हो जाता है और जल्दी थकता नही।
★ आध्यात्मिक स्तर पर जो सजगता आपको चाहिये वो प्राप्त होती है।
★ भय का नाश और आत्मविश्वास की वृद्धि।
★ किसी भी प्रकार की डिप्रेशन, अनिद्रा,एंजायटी और अन्य बहुत से परेशानियों में आराम मिलता है।
★ इंट्यूशन शक्ति बढ़ती जाती है जिससे किसी भी परिस्तिथि, व्यक्ति एवं घटनाओं के प्रति ज्यादा सजग होने शुरू हो जाते है।

अन्य अनेको अनुभव है जो व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है।

आपको बता दु एक सन्यासी दुर्लभ योगी द्वारा यह क्रिया का अभ्यास किया जाता था जिनका नाम मैं यहां नही लूंगा और वे अपने योग बल के लिए काफी प्रसिद्ध थे।

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