श्री श्रीमद् तैलंग स्वामी ( काशी के सचल विश्वनाथ)

आविर्भाव : 1607 ई.
तिरोधान : 1887 ई.

आज जिनके विषय पर मैं बात करने जा रहा हु वो हैं काशी के सचल विश्वनाथ श्री महायोगी तैलंग स्वामी जी महाराज।आज हर कोई व्यक्ति इस नाम से परिचित है। यह महान संत 280 वर्ष आयु तक जीवित रहे।पूरी काशी इनके महिमा से परिपूर्ण है।
आज भी काशी के पंचगंगा घाट ने इनकी महिमा को संजोए रखा है।जहां संत-महयोगियों की बात आती है काशी का नाम शीर्ष पर आता है लेकिन काशी के अंदर भी एक स्थान है जिसका नाम है पंचगंगा घाट जो ऐसे दिव्य सन्तो की महिमा गान आज भी करता है और यहां इनकी दिव्य ऊर्जा शक्ति का आभास एक योगी सहज ही कर सकता है।वैसे तो इनके विषय मे अनेको कथाएं प्रचिलित है ,मैं यहां कुछ कथा अंश का वर्णन करता हु जिससे आप इनकी महिमा का कुछ अंश अनुभव कर सकेंगे।

काशी के विशेष स्थान पर इनके द्वारा प्रतिष्टित दिव्य शिव लिंगम आज भी हमारे बीच मे उपस्थित है एवं अधिकतर लोगो को इस विषय मे जानकारी नही है।इस जगह सभी को अवश्य जाना चाहिए एवं शांत चित्त से ध्यान करना चाहिए विशेष अनुभव के लिए।
नीचे कुछ कथा अंश आप लोगो के साथ सांझा किया जा रहा है।

★ सन् 1869 ई. में दयानन्द सरस्वती नाम के एक प्रख्यात पण्डित काशी आये थे।

वे हिंदू धर्म के देवी — देवताओं की उपासना को निरर्थक और निस्सार बताकर उनकी निंदा करके लोगों को पथभ्रष्ट कर रहे थे। वे इस मिथ्या हिंदू धर्म को त्याग कर लोगों को एक ईश्वर वाद वाले ब्राह्म धर्म को स्वीकार करने के लिए उकसा कर उनका धर्म परिवर्तित करा रहे थे। विशुद्धानंद सरस्वती नामक काशी के स्वामी दयानंद सरस्वती से तर्क में उलझ कर पंचगंगा पर तैलंग स्वामी जी के पास आए और उन्हें दयानंद के विषय में पूरी जानकारी दी। यह सुनकर स्वामी जी ने अपनी पुस्तिकाओं में से महाकाव्य रत्नावली मंगवा कर उसे दिखाते हुए विशुद्धानंद जी को सब समझा दिया। अगले दिन कागज के एक टुकड़े पर कुछ लिखकर मंगलदास ठाकुर द्वारा दयानंद सरस्वती के पास भिजवा दिया। उसे पढ़ने के बाद दयानंद सरस्वती काशी छोड़कर कहीं अन्यत्र चले गए।

★ 1874 ई. में पृथ्वी गिरी के शिष्य विद्यानंद स्वामी राजघाट पर आकर रहने लगे। कहां ले जा रहे हो। लोगों ने जब उनसे काशी धाम दर्शन करने का अनुरोध किया तो उन्होंने कहा कि मैं तैलंग स्वामी को छोड़कर काशी में कुछ नहीं देखूंगा और यहां देखने के लिए है भी क्या?
मुझे सिर्फ उन्हीं का दर्शन करना है। कुछ दिनों के उपरांत वे 1 दिन प्रातः काल तैलंग स्वामी के आश्रम में उपस्थित हुए। उस समय स्वामी जी के पास कुछ ब्रह्मचारी एवं कुछ और लोग भी उपस्थित थे।

विद्यानंद सरस्वती के आने पर स्वामी जी ने उनको सादर आलिंगनबद्ध किया और उसी अवस्था में दोनों ना जाने कहां अदृश्य हो गए जिसे कोई ना तो जान सका और ना समझ सका। इस अप्रत्याशित घटना देखकर वहां उपस्थित लोग निस्तब्ध और निर्वाक रह गए।

करीब आधे घंटे बाद स्वामी जी पुनः अपने स्थान पर दिखाई पड़े परंतु विद्यानंद स्वामी को किसी ने नहीं देखा। कुछ लोग जब उन्हें राजघाट पर देखने गए तो वह वहीं उपस्थित मिले। यह देखकर उनके आश्चर्य का कोई अंत न रहा।

एक बार बनारस के सोनारपुर निवासी श्री रामकमल चट्टोपाध्याय क्या 5 साल का लड़का सीढ़ी से गिर गया जिससे उसकी फसली की एक हड्डी टूट गई थी। उसकी चिकित्सा के लिए श्री रामकमल चट्टोपाध्याय ने उसे भेलूपुरा अस्पताल में भर्ती कराया। बहुत दवा दारू के बाद बालक कुछ ठीक हुआ पर उसकी पसली का दर्द कम नहीं होता था। वह कभी सीधा खड़ा भी नहीं हो पाता था और चल भी नहीं पाता था। उसे कोलकाता लाकर प्रसिद्ध चिकित्सकों द्वारा परीक्षण कराने की सलाह दी गई। चट्टोपाध्याय जी डॉक्टरों की सलाह के अनुसार पुत्र को कलकत्ता ले आए। कलकत्ता के प्रसिद्ध चिकित्सकों ने बच्चे को देखने के बाद कहा कि पूरी तरह स्वस्थ होने के लिए उसे अस्त्र उपाचार की आवश्यकता होगी, जिसके बिना उसका ठीक होना असंभव बताया एवं अष्ट्रोपचार में प्राण – हानि की संभावना भी व्यक्त की। चट्टोपाध्याय जी बहुत निराश होकर काशी लौट गए। उन्हें कोई उपाय नहीं सूझ रहा था । उन्होंने अपनी पत्नी से सब बताया यह भयानक खबर सुनकर माता का मन दर से कांप उठा। थक— हारकर  अंत में वे लोग स्वामी जी की कृपा पाने के लिए उनके पास गए वे प्रतिदिन उनके पास जाकर एक कोने में बैठते, उनका ध्यान करते थे। इस प्रकार महीनों बीत गई।

एक दिन स्वामी जी ने बालक की माता से प्रतिदिन वहां आने का कारण पूछा बालक की माता आर्तस्वर में स्वामी जी को अपने बेटे की बीमारी के बारे में सब कुछ बता कर उनके चरणों में गिरकर होने लगी। स्वामी जी ने दूसरे दिन बालक को साथ लेकर आने को कहा। दूसरे दिन बालों को को लेकर वह दंपत्ति स्वामी जी के पास आया। स्वामी जी ने बालों को को देखा और थोड़ी सी मिट्टी उसकी माता के हाथ में देकर कहा कि दर्द वाले स्थान पर इसे लगाना। अब इसे घर ले जाओ।

मिट्टी लगाने के कुछ देर बाद उसे बहुत ज्यादा बुखार होगा इसके बाद बुखार कम होने पर इसे जोर से भूख लगेगी उस समय घर में जो भी रहे उसे खिला देना, उसी से तुम्हारा बेटा ठीक हो जायेगा। उन्हीं घर आकर स्वामी जी के आदेश अनुसार सब कुछ किया और बालक शीघ्र ही पूरी
तरह स्वस्थ हो गया।

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